Monday 18 December 2017

कुशाग्र बुद्धि बिलासपति सहाय साहब ------ विजय राजबली माथुर

Monday, December 26, 2016
समय करे,नर क्या करे,समय बड़ा बलवान;असर ग्रह सब पर करें ,परिंदा-पशु-इंसान

एक विद्वान के कथन को इस लेख  ( प्रथम प्रकाशित Monday, July 18, 2011 ) का शीर्षक बनाने का उद्देश्य यह बताना है कि ,"Man is the product of his/her environment controlled by his/her Stars & Planets".

प्रस्तुत जन्मांग एक ऐसे व्यक्ति का है जो अपने जीवन के बारहवें वर्ष में गंभीर रूप से बीमार रहे तथा लगातार बयालीस दिनों तक बेहोश रहे और अंततः मौत को पछाड़ कर स्वस्थ हो गए.इनका मस्तिष्क तीव्र था और सदा कुशाग्र बुद्धि रहे.गणित सरीखे नीरस और उबाऊ विषय की जटिल से जटिल समस्याओं को यह पलक झपकते ही बिना कागज़ व कलम की सहायता के हल कर लिया करते थे.कितना अनोखा खेल खेला इनके जन्म कालीन ग्रहों व नक्षत्रों नें जैसा कि इनके जन्मांग से स्वतः स्पष्ट है.इनके जन्म के समय मंगल नीच राशि का होकर लग्न में स्थित था जो जातक को रोगी बना रहा है.साथ ही द्वादश भाव में लग्नेश चन्द्र की स्थिति तथा लग्न में द्वादशेश बुध की स्थिति भी जातक को रोग प्रदान कर रही है.परन्तु चन्द्र और बुध आपस में परिवर्तन योग भी बना रहे हैं.परिवर्तन योग चाहे जिन ग्रहों से बने शुभ होता है.बारवे वर्ष में जातक के मस्तिष्क पर व्यापक आघात पड़ा और वह लगातार बयालीस दिन तक बेहोशी की अवस्था में रहे.भाग्य स्थान में स्थित स्वग्रही गुरु की पूर्ण पंचम दृष्टि लग्न पर होने के कारण उनका जीवन अक्षुण रहाऔरवह स्वस्थ हो गए.

लग्न में बुध व शुक्र की उपस्थिति ने उनके मस्तिष्क को तीव्र मेधावी शक्ति प्रदान की और वह गणित विषय के कुशल मास्टर हो गए.गणित के सवालों को वह मौखिक ही हल कर देते थे.यदि वह अध्यापन के क्षेत्र में जाते तो सफल शिक्षक होते परन्तु वह सरकारी विभाग में अधिकारी बन गए और इस कारण अपनी विलक्षण क्षमता का स्वंय लाभ न उठा सके .गणित के विद्यार्थी उनके पास आ-आकर उनसे ज्ञानार्जन करते थे और वह निशुल्क उनकी समस्याओं का निदान करते थे.

बृहस्पति जो विद्या का ग्रह है अपनी पूर्ण नवम दृष्टि से इनके विद्या भाव को भी देख रहा है.यह भी इन्हें प्रतिभाशाली बनाने में सहायक रहा और इसी का परिणाम था कि इनके अपने सहपाठी भी इनसे गणित के सवाल हल करवाने में सहायता लेते थे ,उनमें से अधिकाँश उच्च पदों पर गए.कई आई.ए.एस.भी बने और एक तो बिहार के चीफ सेक्रेटरी के पद तक पहुंचे.इन पुरातन छात्रों ने  इन जातक को अपनी एसोसियेशन का सेक्रेटरी बना कर सदैव मान दिया और यह मृत्यु पर्यंत (२४ मई २००० ई.) उस पद पर ससम्मान रहे.

कुछ लोग इनकी इस प्रतिभा और सरल व सहयोगी व्यवहार से जलते भी थे और उन्हें क्षति पहुंचाने का प्रयास भी करते थे परन्तु कोई भी उन्हे हानि  पहुंचाने में कभी भी सफल न हो सका क्योंकि इनके शत्रु भाव में 'केतु'विराजमान था तथा उस पर 'राहू'की पूर्ण सप्तम दृष्टि पड़ रही थी .इन दो ग्रहों ने सम्पूर्ण जीवन में उन्हें शत्रुओं पर विजय भी प्रदान की.यद्यपि इन्होने कभी जाहिर तो नहीं किया परन्तु अपने गणित-ज्ञान के आधार पर यह ज्योतिष पर भी पकड़ रखते थे और लग्नस्थ 'शुक्र'इसमें सहायक था.आमतौर पर सिंह राशि के पुरुषों को पुरुष संतान नहीं होती परन्तु राजीव गांधी के सिंह राशि का होते हुए भी पुत्र-राहुल है जो एक अपवाद है और इस और यह हमेशा इंगित करते थे,जिसका ध्यान साधारण तौर पर लोग नहीं रख पाते हैं.

इस लेख के लेखक को उन्होंने 'ज्योतिष'को आजीविका का माध्यम बनाने का परामर्श दिया था जो कि उनके जीवन काल में पूर्ण नहीं किया जा सका .उनकी मृत्यु के उपरान्त छः माह के भीतर उसी वर्ष इस लेखक ने ज्योतिष को व्यवसाय के रूप में अपना लिया जो तब तक हाबी के रूप में चल रहा था.प्रारम्भ में उन्हीं की पुत्री के नाम पर जो कि लेखक की पत्नी हैं अपने प्रतिष्ठान का नाम 'पूनम ज्योतिष कार्यालय'रखा था और आगरा में कमलानगर के मकान से संचालित इस कार्यालय ने धनार्जन में तो सफलता प्राप्त नहीं की परन्तु ढोंग-पाखण्ड और ठगी पर सफल प्रहार करते हुए 'मानव जीवन को सुन्दर,सुखद व समृद्ध' बनाने का गंभीर प्रयास किया था. अब वही कार्य लखनऊ स्थित 'बली वास्तु एवं ज्योतिष कार्यालय'के माध्यम से किया जा रहा है.

यदि बाबूजी साहब ( स्व.बिलास पति सहाय ) स्वंय ज्योतिष को अपनाते तो अधिक सफल रहते क्योंकि गणित के सूत्रों को हल करना इनके लिए चुटकी बजाने का खेल था.उनकी प्रेरणा पर मैं ज्योतिष के क्षेत्र में कूद तो पड़ा हूँ परन्तु स्थापित ज्योतिष्यों की भांति क्लाइंट्स को दहशत में लाकर उन्हें उलटे उस्तरे से मूढ़ने का काम मैं नहीं करता हूँ इसलिए आर्थिक क्षेत्र में पिछडा हूँ,जबकि मान-सम्मान पर्याप्त प्राप्त हुआ है. मैं समस्याओं का समाधान वैज्ञानिक -वैदिक आधार पर करता हूँ और इसी कारण जन्मकालीन ब्राह्मण वर्ग के प्रो.डा.वी.के.तिवारी,प्रिसिपल एम्.एल.दिवेदी,पं.सुरेश पालीवाल,डा.बी.एम्.उपाध्याय ,इंज.एस.एस.शर्मा आदि ने अपने घरों पर वास्तु हवन एवं ग्रहों की शांति आगरा में मुझसे करवाई है.कायस्थ सभा,आगरा और अखिल भारतीय कायस्थ सभा ,आगरा के अध्यक्षों समेत अनेकों कायस्थ परिवारों ने मुझ से ज्योतिषीय परामर्श लिए हैं.पहले अखबारों के माध्यम से और अब ब्लॉग के माध्यम से मैं लगातार ढोंग-पाखंड पर प्रहार कर रहा हूँ और पूर्ण विशवास रखता हूँ कि एक न एक दिन सफलता मुझे अवश्य मिलेगी क्योंकि 'इन महान आत्मा' का आशीर्वाद मुझे प्राप्त है.
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Tuesday 14 November 2017

डॉ एस सी अस्थाना और डॉ एन के सिन्हा : रिशतेदारों से गैर भले





डॉ एस सी अस्थाना साहब  :

डॉ एस सी अस्थाना साहब आर ई आई , दयालबाग,  आगरा में अङ्ग्रेज़ी विषय के अध्यापक थे और रहते हमारी ही कालोनी कमलानगर के ई ब्लाक में थे लेकिन हम लोगों का परस्पर परिचय नहीं था। सर्वप्रथम वह डॉ एन के सिन्हा साहब के बड़े दामाद साहब द्वारा हमारे यहाँ होकर जाने के बाद ईंक्वायारी हेतु एक अङ्ग्रेज़ी का पत्र लेकर आए थे। उन्होने स्पष्ट कहा कि,  हम आपको जानते नहीं हैं इनको क्या जवाब दें ? जो आप कहेंगे वही लिख देते हैं। मैंने उनको कहा कि,  आप यही लिख दें कि,  आप मुझे नहीं जानते हैं। इसके बाद यदि हम दोनों चाहें तो परस्पर मैत्री भाव रख सकते हैं। उन्होने वैसा ही किया। 

हम लोगों का परस्पर आना - जाना होता रहता था।चूंकि मैं ज्योतिष में पकड़ रखता था  एक रोज़ उनकी श्रीमती जी उनकी भतीजी डॉ भावना अस्थाना ,  अध्यापिका गवर्नमेंट कालेज को लेकर आईं और बोलीं कि,  इनका अपने पति से टकराव है  कुछ ऐसा उपाय बताएं जो डायवोर्स हो जाये। मेरा जवाब था कि, फिर आप गलत जगह आईं हैं मैं अलगाव नहीं एकता का उपाय बता सकता हूँ। और सीधे भावना अस्थाना से ही पूछा कि, क्या वह खुद अपने पति से अलगाव चाहती हैं या एकता ? भावना का जवाब था अगर एकता हो सकती है तो वह एकता ही चाहती हैं उनकी एक छोटी सी पुत्री भी थी। इस पर मैंने डॉ अस्थाना की श्रीमती जी से कहा कि, भाभी जी आप कोई हस्तक्षेप न करें मैं सिर्फ भावना को ही उपाय बताऊंगा। सच में भावना ने पूरी तन्मयता से बताए गए मंत्रों का निर्धारित विधि से जाप किया और उनके पति उनको साथ रखने को तैयार हो गए लेकिन समस्या यह थी कि, भावना अपनी जेठानी के साथ नहीं रहना चाहती थीं और उनके पति अपने श्वसुर साहब के मकान में बिना किराया दिये नहीं रहना चाहते थे जबकि वह दामाद से किराया नहीं लेना चाहते थे । यह ज्योतिष की समस्या नहीं थी किन्तु भावना मेरे पास आईं और बोलीं अंकल अब क्या करें ? मैंने उनको कहा आप अपने पिताजी को समझाएँ कि, वह उनसे किराया ( रु 800/- ) जो वह दें ले लें फिर उनकी ही बेटी के नाम रेकरिंग डिपॉजिट खोल कर जमा करते जाएँ इससे दामाद समझेंगे कि, वह सुसराल में मुफ्त नहीं रह रहे हैं और सुसर को संतुष्टि रहेगी कि वह दामाद का पैसा नहीं ले रहे हैं।  ऐसा ही हुआ और इसके बाद भावना के पिता श्री व पति दोनों का ही हम लोगों से निजी मेल - जोल हो गया। 

जब भावना के पति ने अपना अलग मकान खरीदा तब मुझसे ही वास्तु संबंधी जानकारी लेकर उस पर अमल भी किया और गृह प्रवेश का हवन भी मेरे पुरोहिताई में ही किया। फिर जब भावना ने एक और मकान खरीदा तब भी वहाँ के गृह प्रवेश की पुरोहिताई भी मुझसे ही करवाई।भावना के मईंया सुसर साहब व चाचा डॉ  एस सी अस्थाना साहब ने भी मुझसे ही अपने - अपने घरों के वस्तु - दोष निवारणार्थ हवन करवा कर पूर्ण लाभ उठाया।

भावना अस्थाना के कालेज की डॉ सरोज कुलश्रेष्ठ ने भी अपने बेटों की जन्म पत्रियों का विश्लेषण करवाया था और अपने घर बुला कर हवन भी करवाया था। उनके दामाद के छोटे भाई 'ब्रह्मपुत्र समाचार ' नामक साप्ताहिक पत्र निकलते थे उनसे उन लोगों ने परिचय करवाया। उनके अखबार में सामाजिक, राजनीतिक लेख ही नहीं कुछ समय तक साप्ताहिक भविष्यफल भी मैंने लिखा।इसमें छ्पे लेख पढ़ कर 'अग्रमंत्र ' त्रैमासिक के संपादक ने मुझे उप- संपादक के रूप में जोड़ कर कई वर्ष मेरे अनेक लेख प्रकाशित किए हैं।  उनके दामाद ने अपने एक्ज़ीक्यूटिव इंजीनियर साहब से संपर्क करवाया जिनके परिवार के सभी सदस्यों की जन्म पत्रियों का विश्लेषण मैंने ही किया है। उन इंजीनियर साहब के घर वास्तु आदि के हवन भी मैंने किए। कानपुर ट्रांसफर हो जाने पर भी मुझे आगारा से बुलवाकर अपने बेटे का नामकरण संस्कार मुझ से करवाया। गोमती नगर लखनऊ के अपने मकान का भूमि पूजन व गृह प्रवेश के हवन मुझ से ही करवाए। 

इतना संपर्क डॉ एस सी अस्थाना साहब और उनकी भतीजी डॉ भावना अस्थाना के माध्यम से ही संभव हुआ था।   

डॉ एन के सिन्हा  साहब : 
यों तो डॉ एन के सिन्हा साहब थे बाबू जी साहब (पत्नी के पिताजी ) के समधी किन्तु वह मुझसे बेहद लगाव रखते थे। उन्होने जब भी मैं बाबूजी साहब के घर जाता था मुझसे मिलने का क्रम बना रखा था और कहते थे हम आज आप से ही मिलने आए हैं और ज़्यादातर मुझसे ही ज़्यादा बात करते थे। विषय राजनीति और अध्यात्म रहते थे। एक बार मैंने उनके जाने के बाद बाबूजी साहब  से कहा कि, ये आते तो आपसे मिलने हैं और मुझे देख कर कह देते हैं कि, मुझसे मिलने आए थे। उनका जवाब था कि, वह आपसे मिलने के इच्छुक रहते हैं और कह रखा है जब भी वह आगरा से आयें उनके रुकने का पूरा पूरा कार्यक्रम उनको बताते रहें इसलिए वह मेरे पहुँचने से पूर्व ही उनको सूचित कर देते हैं तभी वह आते हैं वैसे उनसे तो अक्सर मिलते ही रहते हैं । 
 मुझसे उनका लगाव क्या और क्यों था इसका खुलासा उन्होने खुद ही 26 मई 2000 को तब किया था जब बाबूजी साहब के निधन के बाद उनके घर शोक प्रकट करने हेतु आए थे। तब उन्होने साफ - साफ कहा था कि, हम और आप आर्यसमाजी भाई हैं। उम्र में कोई 21 वर्ष बड़े होने के बावजूद भी भतीजा न मान कर  उन्होने मुझे भाई का दर्जा  दिया था। एक शिक्षक और एक चिकित्सक के नाते वह काफी दूरदर्शी थे। उनको मालूम था कि, उनकी बड़ी बेटी के पति और उनके दामाद सा :   अपने पिता के नहीं बल्कि, अपने चाचा - चाची और भुयाओं के साथ हैं। 1996 में इसी कारण उनके दामाद साहब को उनके पिता ने कहा भी था - " You are not faithfull to me, You are not reliable to me. " वस्तुतः वह अपने पिताजी को चकमा देकर कि, अभी आ रहे हैं इसलिए उठ गए थे क्योंकि उनके सबसे छोटे चाचा आलोक ( जो अपनी माताश्री को ठग कर मकान बेचने का असफल प्रयास कर चुके थे ) के आँख की पुतली के इशारे पर ही। इसी अवसर पर  1996 में उनका स्पष्ट कथन था कि, वह अपनी बेटियों के बजाय अपने चाचा - चाची और भुआओं का साथ देंगे।

2013 में डॉ एन के सिन्हा साहब के दामाद के एक चाचा SGPGI, लखनऊ में इलाज कराने आए थे तब औपचारिकतावश हम लोग उनको देखने गए थे। उस मौके पर भी उन साहब का कहना था कि, हमें डॉ एन के सिन्हा साहब के दामाद और उनके परिवार का ख्याल नहीं करना चाहिए।मेरी श्रीमतीजी से उनकी श्रीमतीजी ने कहा था कि, वह अपनी भतीजियों का ख्याल न किया करें।  क्योंकि उनको पता था कि, न केवल उनके परिवार के चारों सदस्यों की जन्म पत्रियों का विश्लेषण मैंने किया है बल्कि समय - समय पर उनको सुझाव देता रहता हूँ। डॉ सिन्हा साहब के तीसरी बेटी की  उनके पुत्र  समेत जन्म पत्रियों का विश्लेषण भी मैंने दिया था वांछित उपायों सहित। डॉ साहब की चौथी बेटी व दामाद साहब ने भी अपनी जन्म पत्रियाँ दिखा कर राय ली थी। 

जहां डॉ एस सी अस्थाना साहब की भतीजी ने अपनी चाची से असहमत होकर मेरे सुझावों को मान कर फायदा उठाया था और अपने परिचितों को भी लाभ दिलवाया था वहीं डॉ एन के सिन्हा साहब की बेटी ने अपनी चचिया सास जिनको वह छोटी माँ पुकारती हैं के बहकावे में आकर मेरे बताए सुझावों को ठुकरा कर कह दिया कि, ' हम इनको नहीं मानते'। उनकी छोटी माँ की ही करामात से जब उनके पति बीमार होकर उसी अस्पताल के उसी ICU में उसी बेड पर भर्ती हुये जहां और जिस पर उनके चाचा भी रहे थे। उस स्थिति में भी डॉ सिन्हा की बेटी ने अपनी नन्द को अपने भाई को देखने आने से रोक दिया यह कह कर कि, आने पर रिटर्न टिकट तैयार मिलेगा और कि, उनकी छोटी माँ (देवघर वाली चचिया सास ) का पुत्र उनके साथ 24 घंटे है उनको अपनी नन्द की ज़रूरत नहीं है। अपने इसी 24 घंटे के बाडीगार्ड को लेकर ही वह एकमात्र एक बार आगरा में 12 नवंबर 1995 को आईं थीं और 2010 में उसी को हमारे लखनऊ के मकान में किरायेदार के रूप में रखने की बात उठी थी जिसे न मानने के कारण वे लोग बिदक गए थे। क्योंकि उनके परिवार का कोई भी सदस्य फेसबुक पर हमसे नहीं जुड़ा था इसलिए उनकी दो  बहन के माध्यम से उनको 2015 में आगाह किया था कि उन लोगों से बचें किन्तु सबके पास बुद्धि का अकाल है । अब जब उनके फेसबुक वाल पर ( फेसबुक पर न जुड़े होने के बावजूद ) कमेन्ट में उनके SELF EMPLOYED वाले स्टेटस को लाईक करके 'दुर्गा एवं महिषासुर', 'पूर्व छात्र नेता सतपाल मलिक',' शाब्दिक अर्थ - अनर्थ ', जैसे लेखों के लिंक लगाए  जानकारियों   हेतु  : 

मेसेज के जरिये भी सूचना दी :





तो उनको आपत्तीजनक मानते हुये  डिलीट करके fb को हाईड कर लिया। अपनी फुफेरी बहन  ( जो भी अपने एक पुत्र की जन्म पत्री का विश्लेषण ले चुकी थीं )  को भी fb पर गलत  भड़का दिया। 
एक दूरदर्शी शिक्षक / चिकित्सक डॉ एन के सिन्हा की  बड़ी बेटी ने (अपने पति के नक्शे कदम अपने पिता की राह के विरुद्ध )  नितांत अदूरदर्शिता व मूर्खता का भौंडा  प्रदर्शन किया और मुझे  अनावश्यक बदनाम करने की लगातार कोशिशें कर रही हैं  जबकि, उनसे उम्र में छोटी डॉ एस सी अस्थाना की भतीजी डॉ भावना अस्थाना ने जो कि, रिश्तेदार नहीं थीं काफी सूझ  - बूझ व दूरदर्शिता का परिचय दिया और उनके माध्यम  द्वारा दो अखबारों में लेख लिख कर मुझे अपनी बातें सार्वजनिक करने का मंच भी उपलब्ध हुआ था। वह अपनी बेटियों से हम लोगों को नानाजी व नानीजी कहलवाती रहीं। जबकि रिश्तेदार के नाम पर भी डॉ सिन्हा की बेटी साहिबा ने अपनी बेटियों को गुमराह करके उनमें नफरत और घृणा का संचार कर दिया है । 
गैर रिश्तेदार लेकिन समझदार आर्यसमाजी विद्वान की  खुद भी समझदार एक पुत्री जो कि, उस वक्त तक फेसबुक पर फ्रेंड नहीं थीं एक तीसरे के स्टेटस पर  लिखती हैं :




निष्कर्ष यही निकलता है कि, ' अपने रिशतेदारों से तो गैर भले '।