Saturday 4 November 2023

बेपर्दा हो ही गया आखिरकार विषैला नाग

 Monday, October 23, 2023

बेपर्दा हो ही गया आखिरकार विषैला नाग




  सोमवार, 25 सितंबर 2023 को "घर, मकान और बदनीयतों की निगाहें" शीर्षक से जो आशंका व्यक्त की थी आखिरकार उसकी पुष्टि कल 22- 10 - 2023 को गोकागु की संलग्न टिप्पणी से स्पष्टता : हो जाती है। 



 दो वर्ष पूर्व  25 सितंबर 2021 को हम अपने वर्तमान मकान में रहने आए थे। यह मकान वृहत्तर लखनऊ की एक नव- विकसित कालोनी में है। यहाँ बहुत से लोग लखनऊ के बाहर से आकर बसे हैं जो लखनवी तहज़ीब से नावाकिफ हैं , पैसे वाले हैं और दूसरों की मेहनत की कमाई से अर्जित मकानों पर गिद्ध दृष्टि लगाए हुए हैं। ऐसे लोगों ने पहले तो ये अफवाहें उड़ाईं कि, कालोनी के कुछ मकान अवैध निर्मित हैं जिससे घबरा कर उनके मालिक हड़बड़ा कर सस्ते में बेच कर भाग जाएँ और ये भू - माफिया अपना धंधा करके अकूत कमाई कर सकें। हो सकता है इससे कुछ लाभ उनको मिला भी हो। 

इन लोगों का शिष्य गोकागू तमाम तांत्रिक प्रक्रियाओं का सहारा लेकर भी हमें परेशान करने के उपक्रम करता रहता  है। 26 अगस्त 2022 को एक वृद्ध पड़ोसी  ए  बी  प्रसाद साहब हमारे घर मिलने आए थे तो उनको ही गलत व्यक्ति साबित करने के लिए 27 अगस्त 2022 को अर्थात अगले ही दिन मुझे अपनी तांत्रिक प्रक्रिया से दुर्घटना - ग्रस्त कर दिया था जिसके कुछ जख्म मुंह पर अब भी बरकरार हैं । गोकागू को लगता है कि, चूंकि मेरी  पत्नी को ग्लूकोमा  और मोतियाबिंद की वजह से देखने और पहचानने में समस्या है  अतः मुझे मार कर वह आसानी से मेरे पुत्र को दबाव बना कर हमारे मकान पर बलात कब्जा कर लेगा और उन दोनों  को खदेड़ देगा। संलग्न फ़ोटो प्रति से उन लोगों की गिद्ध - दृष्टि की पुष्टि भी होती है। 

 स्पष्ट करना चाहता हूँ कि, हमारे परिवार के किसी भी सदस्य को किसी भी प्रकार की अनहोनी का सामना करना पड़ता है तो गोकागू , उसके बुलडोजर आका और उसके पीछे लामबंद होकर हमारे परिवार का बहिष्कार करने वाले सभी जनों  को ही उत्तरदाई समझा जाए।  


इस गोकागु की हमारे यहाँ आने के तुरंत बाद से हमारे यहाँ क्या हो रहा है, कौन  आया क्यों आया जानने और अनावश्यक दखलंदाज़ी करने की प्रवृत्ति पाए जाने पर हमने उसके परिवार से बोलचाल बंद कर दी  थी। इस कारण इस गोकागु ने आमने - सामने रहने वाले इस रो के सभी लोगों को हमारे प्रति घृणित दुष्प्रचार करके हमारा बहिष्कार करवा रखा है। लेकिन इसके समर्थक कभी किसी कागज पर हस्ताक्षर कराने की कोशिश करते हैं कभी किसी पाखंड कार्यक्रम के लिए चन्दा मांगने आते रहते हैं। पहले ये लोग सब्जी वाले चौराहे को रावण चौक कहते थे , अभी भी कुछ लोग ऐसा ही करते हैं। कुछ लोगों ने इसका नामकरण ' माँ  दुर्गा चौक ' कर दिया है और इस नाम के ग्रुप में हमें भी शामिल कर लिया है। 


मेकेनिकल इंजीनियर और ज्योतिष के विशेषज्ञ आचार्य राजीव नारायण शर्मा के विश्लेषण का वीडियो जिसमें नवरात्र और दशहरा के संबंध में धार्मिक विचार सम्मिलित हैं का लिंक इस ग्रुप में लगाने पर यह गोकागु जो खुद को शायद ग्रुप का डिक्टेटर समझता है मुझे आदेश देने की टिप्पणी जिसकी फ़ोटो प्रति ऊपर संलग्न है लगा गया था। वह समझता होगा जो मैं उससे बोलना पसंद नहीं करता उसको जवाब दूंगा तो यह उस बुद्धि के रासभ और अक्ल के खोते का खयाली पुलाव ही है। 


जो गोकागु दो वर्ष पूर्व कहता था कि उसने 10 वर्ष से अब तक 12 वर्ष हो गए लेखनी - पेन को हाथ नहीं लगाया है और वह अखबार भी नहीं पढ़ता। ऐसे कुपढ़ एजुकेटेड इललिट्रेट से हम लोग तो संपर्क रख ही नहीं सकते भले ही सारे कुपढ़ एजुकेटेड इलिट्रेट उसके पीछे लामबंद रहें तो रहें फिर उनको न तो हमसे कोई चन्दा मांगना चाहिए और न ही किसी सहयोग की अपेक्षा करनी चाहिए।। 


इस गोकागु ने कुपढ़ एजुकेटेड इललिट्रेट  को यह पट्टी पढ़ा रखी है कि मेरे मरने पर मेरे बेटे को मेरे लाश ठिकाने लगाने के लिए उस कमबख्त के आगे झुकना ही पड़ेगा परंतु  यह भी उसका दिवा स्वप्न ही होने वाला है। 


बहरहाल इस बार नवरात्र के दौरान गोकागु का बेनकाब होना हमारे लिए एक बड़ी उपलब्धि है। जो विषैला नाग छुप छुप कर फुफकारता था वह अब फन फैलाए खुद - ब - खुद नग्न हो ही गया। 


Thursday 2 November 2023

क्रन्तिकारी राम---विजय राजबली माथुर


_( जालंधर के संत श्यामजी पाराशर की पुस्तक ' रामायण का ऐतिहासिक महत्व ' के निष्कर्षों के आधार पर   पूर्व विश्लेषण  का पुनर्प्रकाशन )




 








महात्मा गांधी ने भारत में राम राज्य का स्वप्न देखा था.राम कोटि-कोटि जनता के आराध्य हैं.प्रतिवर्ष दशहरा और दीपावली पर्व राम कथा से जोड़ कर ही मनाये जाते हैं.परन्तु क्या भारत में राम राज्य आ सका या आ सकेगा राम के चरित्र को सही अर्थों में समझे बगैर?जिस समय राम का जन्म हुआ भारत भूमि छोटे छोटे राज तंत्रों में बंटी हुई थी और ये राजा परस्पर प्रभुत्व के लिए आपस में लड़ते थे.उदहारण के लिए कैकेय (वर्तमान अफगानिस्तान) प्रदेश के राजा और जनक (वर्तमान बिहार के शासक) के राज्य मिथिला से अयोध्या के राजा दशरथ का टकराव था.इसी प्रकार कामरूप (आसाम),ऋक्ष प्रदेश (महाराष्ट्र),वानर प्रदेश (आंध्र)के शासक परस्पर कबीलाई आधार पर बंटे हुए थे.वानरों के शासक बाली ने तो विशेष तौर पर रावण जो दूसरे देश का शासक था,से संधि कर रखी  थी कि वे परस्पर एक दूसरे की रक्षा करेंगे.ऎसी स्थिति में आवश्यकता थी सम्पूर्ण भारत को एकता के सूत्र में पिरोकर साम्राज्यवादी ताकतों जो रावण के नेतृत्व में दुनिया भर  का शोषण कर रही थीं का सफाया करने की.लंका का शासक रावण,पाताल लोक (वर्तमान U S A ) का शासक ऐरावन और साईबेरिया (जहाँ छः माह की रात होती थी)का शासक कुम्भकरण सारी दुनिया को घेर कर उसका शोषण कर रहे थे उनमे आपस में भाई चारा था. 


भारतीय राजनीति के तत्कालीन विचारकों ने बड़ी चतुराई के साथ कैकेय प्रदेश की राजकुमारी कैकयी के साथ अयोध्या के राजा दशरथ का विवाह करवाकर दुश्मनी को समाप्त करवाया.समय बीतने के साथ साथ अयोध्या और मिथिला के राज्यों में भी विवाह सम्बन्ध करवाकर सम्पूर्ण उत्तरी भारत की आपसी फूट को दूर कर लिया गया.चूँकि जनक और दशरथ के राज्यों की सीमा नज़दीक होने के कारण दोनों की दुश्मनी भी उतनी ही ज्यादा थी अतः इस बार निराली चतुराई का प्रयोग किया गया.अवकाश प्राप्त राजा विश्वामित्र जो ब्रह्मांड (खगोल) शास्त्र के ज्ञाता और जीव वैज्ञानिक थे और जिनकी  प्रयोगशाला में गौरय्या चिड़िया तथा नारियल वृक्ष का कृत्रिम रूप से उत्पादन करके इस धरती  पर सफल परीक्षण किया जा चुका था,जो त्रिशंकु नामक कृत्रिम उपग्रह (सेटेलाइट) को अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित कर चुके थे जो कि आज भी आकाश में ज्यों का त्यों परिक्रमा कर रहा है,ने विद्वानों का वीर्य एवं रज (ऋषियों का रक्त)ले कर परखनली के माध्यम से एक कन्या को अपनी प्रयोगशाला में उत्पन्न किया जोकि,सीता नाम से जनक की दत्तक पुत्री बनवा दी गयी. वयस्क होने पर इन्हीं सीता को मैग्नेटिक मिसाइल (शिव धनुष) की मैग्नेटिक चाभी एक अंगूठी में मढवा कर दे दी गयी जिसे उन्होंने पुष्पवाटिका में विश्वामित्र के शिष्य के रूप में आये दशरथ पुत्र राम को सप्रेम भेंट कर दिया और जिसके प्रयोग से राम ने उस मैग्नेटिक मिसाइल उर्फ़ शिव धनुष को उठाकर नष्ट कर दिया जिससे  कि इस भारत की धरती पर उसके प्रयोग से होने वाले विनाश से बचा जा सका.इस प्रकार सीता और राम का विवाह उत्तरी भारत के दो दुश्मनों को सगे दोस्तों में बदल कर जनता के लिए वरदान के रूप में आया क्योंकि अब संघर्ष प्रेम में बदल दिया गया था.


कैकेयी के माध्यम से राम को चौदह  वर्ष का वनवास दिलाना राजनीतिक विद्वानों का वह करिश्मा था जिससे साम्राज्यवाद के शत्रु   को साम्राज्यवादी धरती पर सुगमता से पहुंचा कर धीरे धीरे सारे देश में युद्ध की चुपचाप तय्यारी की जा सके और इसकी गोपनीयता भी बनी रह सके.इस दृष्टि से कैकेयी का साहसी कार्य राष्ट्रभक्ति में राम के संघर्ष से भी श्रेष्ठ है क्योंकि कैकेयी ने स्वयं विधवा बन कर जनता की प्रकट नज़रों में गिरकर अपने व्यक्तिगत स्वार्थों की बलि चढ़ा कर राष्ट्रहित में कठोर निर्णय लिया.निश्चय ही जब राम के क्रांतिकारी क़दमों की वास्तविक गाथा लिखी जायेगी कैकेयी का नाम साम्राज्यवाद के संहारक और राष्ट्रवाद की सजग प्रहरी के रूप में स्वर्णाक्षरों में लिखा जाएगा.


साम्राज्यवादी -विस्तारवादी रावण के परम मित्र  बाली को उसके विद्रोही भाई  सुग्रीव की मदद से समाप्त  कर के राम ने अप्रत्यक्ष रूप से साम्राज्यवादियों की शक्ति को कमजोर कर दिया.इसी प्रकार रावण के विद्रोही भाई विभीषण से भी मित्रता स्थापित कर के और एयर मार्शल (वायुनर उर्फ़ वानर) हनुमान के माध्यम से साम्राज्यवादी रावण की सेना व खजाना अग्निबमों से नष्ट करा दिया.अंत में जब राम के नेतृत्व में राष्ट्रवादी शक्तियों और रावण की साम्राज्यवाद समर्थक शक्तियों में खुला युद्ध हुआ तो साम्राज्यवादियों की करारी हार हुई क्योंकि,कूटनीतिक चतुराई से साम्राज्यवादियों को पहले ही खोखला किया जा चुका था.जहाँ तक नैतिक दृष्टिकोण का सवाल है सूपर्णखा का अंग भंग कराना,बाली की विधवा का अपने देवर सुग्रीव से और रावण की विधवा का विभीषण से विवाह कराना* तर्कसंगत नहीं दीखता.परन्तु चूँकि ऐसा करना साम्राज्यवाद का सफाया कराने के लिए वांछित था अतः राम के इन कृत्यों पर उंगली नहीं उठायी जा सकती है.


अयोध्या लौटकर राम द्वारा  भारी प्रशासनिक फेरबदल करते हुए पुराने प्रधानमंत्री वशिष्ठ ,विदेश मंत्री सुमंत आदि जो काफी कुशल और योग्य थे और जिनका जनता में काफी सम्मान था अपने अपने पदों से हटा दिया गया.इनके स्थान पर भरत को प्रधान मंत्री,शत्रुहन को विदेश मंत्री,लक्ष्मण को रक्षा मंत्री और हनुमान को प्रधान सेनापति नियुक्त किया गया.ये सभी योग्य होते हुए भी राम के प्रति व्यक्तिगत रूप से वफादार थे इसलिए राम शासन में निरंतर निरंकुश होते चले गए.अब एक बार फिर अपदस्थ वशिष्ठ आदि गणमान्य नेताओं ने वाल्मीकि के नेतृत्व में योजनाबद्ध तरीके से सीता को निष्कासित करा दिया जो कि उस समय   गर्भिणी थीं और जिन्होंने बाद में वाल्मीकि के आश्रम में आश्रय ले कर लव और कुश नामक दो जुड़वाँ पुत्रों को जन्म दिया.राम के ही दोनों बालक राजसी वैभव से दूर उन्मुक्त वातावरण में पले,बढे और प्रशिक्षित हुए.वाल्मीकि ने लव एवं कुश को लोकतांत्रिक शासन की दीक्षा प्रदान की और उनकी भावनाओं को जनवादी धारा  में मोड़ दिया.राम के असंतुष्ट विदेश मंत्री शत्रुहन लव और कुश से सहानुभूति रखते थे और वह यदा कदा वाल्मीकि के आश्रम में उन से बिना किसी परिचय को बताये मिलते रहते थे.वाल्मीकि,वशिष्ठ आदि के परामर्श पर शत्रुहन ने पद त्याग करने की इच्छा को दबा दिया और राम को अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति से अनभिज्ञ रखा.इसी लिए राम ने जब अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया तो उन्हें लव-कुश के नेतृत्व में भारी जन आक्रोश का सामना करना पडा और युद्ध में भीषण पराजय के बाद जब राम,भरत,लक्ष्मण और शत्रुहन बंदी बनाये जा कर सीता के सम्मुख पेश किये गए तो सीता को जहाँ साम्राज्यवादी -विस्तारवादी राम की पराजय की तथा लव-कुश द्वारा नीत लोकतांत्रिक शक्तियों की जीत पर खुशी हुई वहीं मानसिक विषाद भी कि,जब राम को स्वयं विस्तारवादी के रूप में देखा.वाल्मीकि,वशिष्ठ आदि के हस्तक्षेप से लव-कुश ने राम आदि को मुक्त कर दिया.यद्यपि शासन के पदों पर राम आदि बने रहे तथापि देश का का आंतरिक प्रशासन लव और कुश के नेतृत्व में पुनः लोकतांत्रिक पद्धति पर चल निकला और इस प्रकार राम की छाप जन-नायक के रूप में बनी रही और आज भी उन्हें इसी रूप में जाना जाता है.

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