Wednesday 4 May 2016

मेरठ कालेज में पढ़ाई क़े दौरान हुये अनुभव ------ विजय राजबली माथुर

*मेरठ /कानपुर डायगनल में प्रारम्भ सारे आन्दोलन विफल हुए चाहे वह १८५७ ई .की प्रथम क्रांति हो,सरदार पटेल का किसान आन्दोलन या फिर,भा .क .पा .की स्थापना क़े साथ चला आन्दोलन  हो.
**गोष्ठी क़े सभापति कामर्स क़े H .O .D .डा.एल .ए.खान ने अपने  भाषण मेरी सराहना करते हुये कहा था  :
"हम उस छात्र से सहमत हों या असहमत लेकिन मैं उसके साहस की सराहना करता हूँ कि,यह जानते हुये भी सारा माहौल बंगलादेश क़े पक्ष में है ,उसने विपक्ष में बोलने का फैसला किया ."
***राजशास्त्र परिषद् की एक गोष्ठी में एक बार एम.एस.सी.(फिजिक्स)की एक छात्रा ने बहुत तार्किक ढंग से भाग लिया था.प्रो.क़े.सी.गुप्ता का मत था कि,यदि यह गोष्ठी प्रतियोगी होती तो वह निश्चित ही प्रथम पुरस्कार प्राप्त करती.राजनीती क़े विषय पर नाक-भौं सिकोड़ने वालों क़े लिये यह दृष्टांत आँखें खोलने वाला है.
****पहले ही दिन प्रो. तारा चन्द्र माथुर ने प्रश्न उठा दिया -व्हाट इज साईंस?जब कोई नहीं बोला तो मैंने उनसे हिन्दी में जवाब देने की अनुमति लेकर बताया-"किसी भी विषय क़े नियमबद्ध एवं क्रमबद्ध अध्ययन को विज्ञान कहते हैं."वह बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि हिन्दी में उन्हें भी इतना नहीं पता था वैसे बिलकुल ठीक जवाब है. आज जब लोग मेरे ज्योतिष -विज्ञान कहने पर बिदकते हैं,तब प्रो. तारा चन्द्र माथुर का वह वक्तव्य बहुत याद आता है.
*****प्रो. इंदु ने कहा कि, वे सब साथी प्रो. झेंप गये और बोले भाभी जी इतना अच्छा माड़ बनाती हैं तभी बच्चे झगड़ रहे थे. उनका यह सब बताने का आशय था किसी भी घर की इज्जत उस घर की महिला क़े हाथों में है.


१९६९ में मैंने इन्टर की परीक्षा उत्तीर्ण कर ली थी.बहुत तडके अखबार वाला .५० पै.लेकर रिज़ल्ट दिखा गया था.परन्तु हाई स्कूल की परीक्षा छोटा भाई उत्तीर्ण न कर सका उसे फिर उसी कक्षा व कालेज में दाखिला लेना पड़ा जबकि,बाबूजी ने मुझे मेरठ कालेज में बी .ए .में दाखिला करा लेने को कहा और मैंने वैसा ही किया.उस समय वहां क़े प्रधानाचार्य वी.पुरी सा :थे जो बाद में अपनी यूनियन का पदाधिकारी चुने जाने क़े बाद त्याग-पत्र दे गये.फिलासफी क़े एच .ओ .डी .डा .बी.भट्टाचार्य कार्यवाहक प्रधानाचार्य बने जिनके विरुद्ध उन्हीं क़े कुछ साथियों ने छात्र नेताओं को उकसा कर आन्दोलन करवा दिया.डी.एम्.ऋषिकेश कौल सा :कालेज कमेटी क़े पदेन अध्यक्ष थे और उनका वरद हस्त डा.भट्टाचार्य को प्राप्त था.नतीजतन एक माह हमारा कालेज पी.ए.सी.का कैम्प बना रहा और शिक्षण कार्य ठप्प रहा.रोज़ यू .पी.पुलिस मुर्दाबाद क़े नारे लगते रहे और पुलिस वाले सुनते रहे.
एक छात्र ने स्याही की दवात  डा .भट्टाचार्य पर उड़ेल  दी और उनका धोती-कुर्ता रंग गया ,उन्हें घर जाकर कपडे बदलने पड़े.समाजशास्त्र की कक्षा में हमारा एक साथी सुभाष चन्द्र शर्मा प्रधानाचार्य कार्यालय का ताला तोड़ कर जबरिया प्रधानाचार्य बन गया था और उसने डा.भट्टाचार्य समेत कई कर्मचारियों -शिक्षकों की बर्खास्तगी का आदेश जारी कर दिया था.उसे गिरफ्तार कर लिया गया और बहुत दिन तक उसकी मुकदमें में पेशी होती रही;वैसे कालेज क़े सामने कचहरी प्रांगण में ही उसका ढाबा भी चलता था.सुनते थे कि,वह पंद्रह दिन संसोपा में और पंद्रह दिन जनसंघ में रह कर नेतागिरी करता था.पढ़ाई से उसे ख़ास मतलब नहीं था डिग्री लेने और नेतागिरी करने क़े लिए वह कालेज में छात्र बना था.हमारे साथ एन.सी.सी.की परेड में भी वह कभी -कभी भाग ले लेता था,सब कुछ उसकी अपनी मर्जी पर था.पिछले वर्षों तक कालेज यूनियन क़े प्रेसीडेंट रहे सतपाल मलिक (जो भारतीय क्रांति दल,इंदिरा कांग्रेस ,जन-मोर्चा,जनता दल होते हुए अब भाजपा में हैं और वी.पी.सिंह सरकार में उप-मंत्री भी रह चुके) को डा.भट्टाचार्य ने कालेज से निष्कासित कर दिया और उनके विरुद्ध डी.एम.से इजेक्शन नोटिस जारी करा दिया.

नतीजतन सतपाल मलिक यूनियन क़े चुनावों से बाहर हो गयेऔर उनके साथ उपाद्यक्ष रहे राजेन्द्र सिंह यादव (जो बाद में वहीं अध्यापक भी बने) और महामंत्री रहे तेजपाल सिंह क्रमशः समाजवादी युवजन सभा तथा भा.क्र.द .क़े समर्थन से एक -दूसरे क़े विरुद्ध अध्यक्ष पद क़े उम्मीदवार बन बैठे.बाज़ी कांग्रेस समर्थित महावीर प्रसाद जैन क़े हाथ लग गई और वह प्रेसिडेंट बन गये.महामंत्री पद पर विनोद गौड (श्री स.ध.इ.कालेज क़े अध्यापक लक्ष्मीकांत गौड क़े पुत्र थे और जिन्हें ए.बी.वी.पी.का समर्थन था)चुने गये.यह एम्.पी.जैन क़े लिए विकट स्थिति थी और मजबूरी भी लेकिन प्राचार्य महोदय बहुत खुश हुए कि,दो प्रमुख पदाधिकारी दो विपरीत धाराओं क़े होने क़े कारण एकमत नहीं हो सकेंगे.लेकिन मुख्यमंत्री चौ.चरण सिंह ने छात्र संघों की सदस्यता को ऐच्छिक बना कर सारे छात्र नेताओं को आन्दोलन क़े एक मंच पर खड़ा कर दिया.

ताला पड़े यूनियन आफिस क़े सामने कालेज क़े अन्दर १९७० में जो सभा हुई उसमें पूर्व महामंत्री विनोद गौड ने दीवार पर चढ़ काला झंडा फहराया और पूर्व प्रेसीडेंट महावीर प्रसाद जैन ने उन्हें उतरने पर गले लगाया तो सतपाल मलिक जी ने पीठ थपथपाई और राजेन्द्र सिंह यादव ने हाथ मिलाया.इस सभा में सतपाल मलिक जी ने जो भाषण दिया उसकी ख़ास -ख़ास बातें ज्यों की त्यों याद हैं (कहीं किसी रणनीति क़े तहत वही कोई खण्डन न कर दें ).सतपाल मलिक जी ने आगरा और बलिया क़े छात्रों को ललकारते हुए,रघुवीर सहाय फिराक गोरखपुरी क़े हवाले से कहा था कि,उ .प्र .में आगरा /बलिया डायगनल में जितने आन्दोलन हुए सारे प्रदेश में सफल होकर पूरे देश में छा  गये और उनका व्यापक प्रभाव पड़ा.(श्री मलिक द्वारा दी  यह सूचना ही मुझे आगरा में बसने क़े लिए प्रेरित कर गई थी ).मेरठ /कानपुर डायगनल में प्रारम्भ सारे आन्दोलन विफल हुए चाहे वह १८५७ ई .की प्रथम क्रांति हो,सरदार पटेल का किसान आन्दोलन या फिर,भा .क .पा .की स्थापना क़े साथ चला आन्दोलन  हो.श्री मलिक चाहते थे कि आगरा क़े छात्र मेरठ क़े छात्रों का पूरा समर्थन करें.श्री मलिक ने यह भी कहा था कि,वह चौ.चरण सिंह का सम्मान  करते हैं,उनके कारखानों से चौ.सा :को पर्याप्त चन्दा दिया जाता है लेकिन अगर चौ.सा : छात्र संघों की अनिवार्य सदस्यता बहाल किये बगैर मेरठ आयेंगे तो उन्हें चप्पलों की माला पहनने वाले श्री मलिक पहले सदस्य होंगें.चौ.सा :वास्तव में अपना फैसला सही करने क़े बाद ही मेरठ पधारे भी थे और बाद में श्री सतपाल मलिक चौ. सा : की पार्टी से बागपत क्षेत्र क़े विधायक भी बने और इमरजेंसी में चौ. सा :क़े जेल जाने पर चार अन्य भा.क्र.द.विधायक लेकर इंका.में शामिल हुए.

जब भारत का एक हवाई जहाज लाहौर अपहरण कर ले जाकर फूंक दिया गया था तो हमारे कालेज में छात्रों व शिक्षकों की एक सभा हुई जिसमें प्रधानाचार्य -भट्टाचार्य सा :व सतपाल मलिक सा :अगल -बगल खड़े थे.मलिक जी ने प्रारंभिक भाषण में कहा कि,वह भट्टाचार्य जी का बहुत आदर करते हैं पर उन्होंने उन्हें अपने शिष्य लायक नहीं समझा.जुलूस में भी दोनों साथ चले थे जो पाकिस्तान सरकार क़े विरोध में था.राष्ट्रीय मुद्दों पर हमारे यहाँ ऐसी ही एकता हमेशा रहती है,वरना अपने निष्कासन पर मलिक जी ने कहा था -इस नालायक प्रधानाचार्य ने मुझे नाजायज तरीके से निकाल  दिया है अब हम भी उन्हें हटा कर ही दम लेंगें.बहुत बाद में भट्टाचार्य जी ने तब त्याग -पत्र दिया जब उनकी पुत्री वंदना भट्टाचार्य को फिलासफी में लेक्चरार नियुक्त कर लिया गया.

समाज-शास्त्र परिषद् की तरफ से बंगलादेश आन्दोलन पर एक गोष्ठी का आयोजन किया गया था.उसमें समस्त छात्रों व शिक्षकों ने बंगलादेश की निर्वासित सरकार को मान्यता देने की मांग का समर्थन किया.सिर्फ एकमात्र वक्ता मैं ही था जिसने बंगलादेश की उस सरकार को मान्यता देने का विरोध किया था और उद्धरण डा.लोहिया की पुस्तक "इतिहास-चक्र "से लिए थे (यह पुस्तक एक गोष्ठी में द्वितीय पुरूस्कार क़े रूप में प्राप्त हुई थी ).मैंने कहा था कि,बंगलादेश हमारे लिए बफर स्टेट नहीं हो सकता और बाद में जिस प्रकार कुछ समय को छोड़ कर बंगलादेश की सरकारों ने हमारे देश क़े साथ व्यवहार किया मैं समझता हूँ कि,मैं गलत नहीं था.परन्तु मेरे बाद क़े सभी वक्ताओं चाहे छात्र थे या शिक्षक मेरे भाषण को उद्धृत करके मेरे विरुद्ध आलोचनात्मक बोले.विभागाध्यक्ष डा.आर .एस.यादव (मेरे भाषण क़े बीच में हाल में प्रविष्ट हुए थे) ने आधा भाषण मेरे वक्तव्य क़े विरुद्ध ही दिया.तत्कालीन छात्र नेता आर.एस.यादव भी दोबारा भाषण देकर मेरे विरुद्ध बोलना चाहते थे पर उन्हें दोबारा अनुमति नहीं मिली थी.गोष्ठी क़े सभापति कामर्स क़े H .O .D .डा.एल .ए.खान ने अपने  भाषण मेरी सराहना करते हुये कहा था  :
"हम उस छात्र से सहमत हों या असहमत लेकिन मैं उसके साहस की सराहना करता हूँ कि,यह जानते हुये भी सारा माहौल बंगलादेश क़े पक्ष में है ,उसने विपक्ष में बोलने का फैसला किया ."और उन्होंने मुझसे इस साहस को बनाये रखने की उम्मीद भी ज़ाहिर की थी.

मेरे लिए फख्र की बात थी की सिर्फ मुझे ही अध्यक्षीय भाषण में स्थान मिला था किसी अन्य वक्ता को नहीं.इस गोष्ठी क़े बाद राजेन्द्र सिंह जी ने एक बार जब सतपाल मलिक जी कालेज आये थे मेरी बात उनसे कही तो मलिक जी ने मुझसे कहा कि,वैसे तो तुमने जो कहा था -वह सही नहीं है,लेकिन अपनी बात ज़ोरदार ढंग से रखी ,उसकी उन्हें खुशी है.

चूंकि राजनीति में मेरी शुरू से ही दिलचस्पी रही है,इसलिए राज-शास्त्र परिषद् की ज्यादातर गोष्ठियों में मैंने भाग लिया.समाज-शास्त्र परिषद् की जिस गोष्ठी का ज़िक्र पहले किया है -वह भी राजनीतिक विषय पर ही थी.राजशास्त्र परिषद् की एक गोष्ठी में एक बार एम.एस.सी.(फिजिक्स)की एक छात्रा ने बहुत तार्किक ढंग से भाग लिया था.प्रो.क़े.सी.गुप्ता का मत था कि,यदि यह गोष्ठी प्रतियोगी होती तो वह निश्चित ही प्रथम पुरस्कार प्राप्त करती.राजनीती क़े विषय पर नाक-भौं सिकोड़ने वालों क़े लिये यह दृष्टांत आँखें खोलने वाला है.प्रो.मित्तल कम्युनिस्ट  थे,उन्होंने" गांधीवाद और साम्यवाद " विषय पर अपने विचार व्यक्त किये थे.उनके भाषण क़े बाद मैंने भी बोलने की इच्छा व्यक्त की ,मुझे ५ मि.बोलने की अनुमति मिल गई थी किन्तु राजेन्द्र सिंह यादव छात्र -नेता ने भी अपना नाम पेश कर दिया तो प्रो.गुप्ता ने कहा कि फिर सभी छात्रों  हेतु अलग से एक गोष्ठी रखेंगे.१० अप्रैल १९७१ से हमारे फोर्थ सेमेस्टर की परीक्षाएं थीं,इसलिए मैंने नाम नहीं दिया था.प्रो.आर.क़े.भाटिया ने अपनी ओर से मेरा नाम गोष्ठी क़े लिये शामिल कर लिया था,वह मुझे ४ ता.को मिल पाये एवं गोष्ठी ६ को थी.अतः मैंने उनसे भाग लेने में असमर्थता व्यक्त की.वह बोले कि,वह कालेज छोड़ रहे हैं इसलिए मैं उनके सामने इस गोष्ठी में ज़रूर भाग लूं.वस्तुतः उनका आई.ए.एस.में सिलेक्शन हो गया था.वह काफी कुशाग्र थे.लखनऊ विश्विद्यालय में प्रथम आने पर उन्हें मेरठ-कालेज में प्रवक्ता पद स्वतः प्राप्त हो गया था.उनकी इज्ज़त की खातिर मैंने लस्टम-पस्टम तैयारी की.विषय था "भारत में साम्यवाद की संभावनाएं"और यह प्रो. गुप्ता क़े वायदे अनुसार हो रही गोष्ठी थी. अध्यक्षता प्राचार्य डा. परमात्मा शरण सा :को करनी थी. वह कांग्रेस (ओ )में सक्रिय थे उस दिन उसी समय उसकी भी बैठक लग गई.अतः वह वहां चले गये,अध्यक्षता की-प्रो. मित्तल ने.मैंने विपक्ष में तैयारी की थीऔर उसी अनुसार बोला भी.मेरा पहला वाक्य था-आज साम्यवाद की काली- काली घटायें छाई हुई हैं.मेरा मुंह तो आडियेंस की तरफ था लेकिन साथियों ने बताया कि,प्रो. मित्तल काफी गुस्से में भर गये थे.नीचे जो चार पुस्तकें आप देख रहे हैं ,वे मुझे इसी गोष्ठी में द्वितीय  पुरूस्कार क़े रूप में प्राप्त हुई थीं.प्रथम पुरस्कार प्रमोद सिंह चौहान को "दास कैपिटल"मिली थी.वह मेरे ही सेक्शन में था और मैंने भी यूनियन में एम.पी. हेतु अपना वोट उसे ही दिया था.बाद में प्रो. भाटिया ने बताया था कि,उन्होंने तथा प्रो. गुप्ता ने मुझे ९-९ अंक दिये थे,प्रो. मित्तल ने शून्य दिया अन्यथा प्रथम पुरुस्कार मुझे मिल जाता क्योंकि प्रमोद को प्रो. भाटिया तथा प्रो. गुप्ता ने ५-५ अंक व प्रो. मित्तल ने पूरे क़े पूरे १० अंक दिये थे.
7वीं कक्षा में शाहजहाँपुर में प्राप्त 







कालांतर में (१९८६)मुझे कम्युनिस्ट आन्दोलन में सक्रिय रूप से शामिल होना पड़ा. १५ वर्षों में कितना अन्तर हो गया था.मैन इज दी प्रोडक्ट आफ हिज एन्वायरन्मेंट तो मैं कैसे बच सकता था.बहरहाल मेरठ विश्वविद्यालय में हम लोगों को एक एडीशनल आप्शनल सब्जेक्ट पढना होता था जो अपनी फैकल्टी का न हो.प्रथम सेमेस्टर में "धर्म और संस्कृति"सब क़े लिये अनिवार्य था. सेकिंड सेमेस्टर में मैंने "एवरी डे केमिस्ट्री"ले ली थी. आर्ट्स व कामर्स क़े ज्यादातर विद्यार्थी हाजिरी लगा कर भाग जाते थे,इसलिए पीछे बैठते थे. मेरे जैसे ४ -५ क्षात्र नियमित रूप से पहली रो में बैठते थे. पहले ही दिन प्रो. तारा चन्द्र माथुर ने प्रश्न उठा दिया -व्हाट इज साईंस?जब कोई नहीं बोला तो मैंने उनसे हिन्दी में जवाब देने की अनुमति लेकर बताया-"किसी भी विषय क़े नियमबद्ध एवं क्रमबद्ध अध्ययन को विज्ञान कहते हैं."वह बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा कि हिन्दी में उन्हें भी इतना नहीं पता था वैसे बिलकुल ठीक जवाब है. आज जब लोग मेरे ज्योतिष -विज्ञान कहने पर बिदकते हैं,तब प्रो. तारा चन्द्र माथुर का वह वक्तव्य बहुत याद आता है.
तीसरे और चौथे सेमेस्टर में "कार्यालय पद्धति" ले लिया ताकि हिन्दी पढ़ कर छुट्टी मिल जाये.इसके एक प्रो. विष्णु शरण इंदु का आज भी ध्यान है क्योंकि वह बहुत अच्छा पढ़ाते थे.प्रो.रघुवीर शरण मित्र लिखित "भूमिजा" वह काफी तन्मयता से पढ़ाते थे.मेरा लेख" सीता का विदोह " उसी पढ़ाई पर आधारित है.(रावण वध एक पूर्व निर्धारित योजना जिसकी किश्तें  तथा बाद में पूर्ण  लेख भी क्रान्ति स्वर पर  प्रकाशित हैं सर्व प्रथम सूक्ष्म रूप में मेरठ कॉलेज की मैगजीन में ही छपा था.)प्रो. इंदु एक रोज परिवार में महिलाओं की भूमिका पर बताने लगे उन्होंने अपने एक साथी प्रो. सा :क़े घर का  वाक्या बगैर उनका नाम बताये सुनाया.जब वह तथा ४-५ प्रो. लोग उनके घर बिन बुलाये पहुँच गये क्योंकि,वह किसी को बुलाते ही नहीं थे न कहीं जाते थे. उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी इसलिए.प्रो. इंदु ने बताया कि, वे सब यह सुन कर हैरान रह गये कि उन प्रो. सा :क़े बच्चे चावल क़े माड़ क़े लिये झगड़ रहे थे. प्रो. सा :ने उस कमरे में जाकर अपनी पत्नी को कहा -मेरे साथियों क़े बीच आज बहुत बड़ी जलालत हो गई. उनकी पत्नी ने कहा कुछ नहीं हुआ आप जाईये मैं आकर सँभाल लेती हूँ. आधे घंटे बाद वह ६ कप माड़ लेकर आईं उनमे काजू-बादाम जैसे मेवे पड़े हुये थे. प्रो. इंदु ने कहा कि, वे सब साथी प्रो. झेंप गये और बोले भाभी जी इतना अच्छा माड़ बनाती हैं तभी बच्चे झगड़ रहे थे. उनका यह सब बताने का आशय था किसी भी घर की इज्जत उस घर की महिला क़े हाथों में है.

हमारे मेरठ कालेज क़े कन्वोकेशन में राज्यपाल डा. बी. गोपाला रेड्डी आये थे. राजेन्द्र कुमार अटल क़े नेतृत्व में छात्रों  ने गाउन का विरोध किया. मैं भी गाउन क़े पछ में नहीं था. बाद में उसे आप्शनल बना दिया गया. बिना गाउन क़े मैंने भी डिग्री हासिल की.मेरे सामने ही पोलिटिकल साईंस एसोसियेशन की नेशनल कान्फरेन्स भी हमारे कालेज में हुई थी. प्रो.हालू दस्तूर आदि तमाम विद्वान् तो आये ही थे,संगठन कांग्रेस क़े( पूर्व उप-प्रधान मंत्री )मोरारजी देसाई तथा कांग्रेस (आर.)क़े केशव देव मालवीय भी आये थे. दोनों में नोक-झोंक भी चली थी. मालवीय क़े भाषण क़े दौरान मोरारजी ने "हाँ पीपुल्स डेमोक्रेसी" शब्द से टोका-टाकी भी की थी.

कुल मिला कर मेरठ कालेज में पढ़ाई क़े दौरान काफी अनुभव भी हुए.चौ.चरण सिंह जो इसी कालेज से पढ़े थे देश क़े प्रधान मंत्री भी बने.उ.प्र.क़े मुख्य मंत्री भी वह हुए.यहीं क़े सत पाल मलिक भी केन्द्रीय मंत्री रह चुके हैं.मैं फख्र कर सकता हूँ कि, मैं भी इसी कालेज का  छात्र  रहा हूँ. मैंने आगे न पढने का निर्णय किया था. नौकरी मिलना भी आसान न था. 

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