Monday 7 September 2015

बरेली के दौरान ---विजय राजबली माथुर

शुक्रवार, 10 सितंबर 2010

बरेली के दौरान 

बरेली कैंट में गोला बाज़ार में हम लोग रहते थे और रुक्स प्राइमरी स्कूल से पांचवी पास कर रुक्स हायर सेकण्ड्री स्कूल से छठवीं में पढ़ रहा था तो अजय प्राइमरी स्कूल में ही था.एक बार अफवाह फैली की प्राइमरी स्कूल के हैडमास्टर ने किसी लड़के को मुर्गा बना कर उसकी पीठ पर १०-१२ ईंटें रखकर स्कूल के गेट के बाहर धूप में सजा दी जिस कारण उसके नाक-मुहं से खून बहने लगा.हायर सेकण्ड्री स्कूल के वह बच्चे जिनके छोटे भाई प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे अपनी-अपनी क्लास छोड़ कर वहां दौड़ पड़े उनमे मैं भी शामिल हो गया.प्रा.स्कूल के सेकंड हेड मास्टर रमजान अहमद साःने अपने हेड मास्टर इशरत अली साः की जम कर पिटाई की और पुलिस के हवाले कर दिया तथा स्कूल में छुट्टी करा दी.घर पर अजय को सुरक्षित देख कर फिर से अपनी क्लास में साथियों के साथ पहुच गए.रमजान अहमद साः को छावनी बोर्ड ने तरक्की दे कर अन्य स्कूल में हेड मास्टर बना दिया और इशरत अली साः को पद से गिरा कर अन्य स्कूल में सेकंड हेड मास्टर बना दिया.इस स्कूल में अवस्थी जी को हेड मास्टर बना दिया.हमारे उस स्कूल में रहने के दौरान भी रमजान अहमद साः बहुत अच्छा पढ़ाते थे,बच्चों के प्रति उनका व्यवहार बहुत अच्छा था,इसलिए उनकी तरक्की की बात से ख़ुशी हुई थी.

हमारे हायर सेकण्ड्री स्कूल में सालाना प्रोग्राम के के समय लड़कियों द्वारा एक नाटक प्रस्तुत किया गया था जिसमे दो भूमिकाएं याद हैं-(१) अमर सिंह तो मर गया (२)लक्ष्मी हो कर करें मजूरी.

बरेली में पुराने टायर से बनी चप्पलों का रिवाज़ तब था.बाबू जी ने वे चप्पलें सफ़र के लिए लीं थीं.मामाजी का पथरी का लखनऊ में ऑपरेशन हुआ था.बउआ तो शोभा को लेकर मामा जी के घर न्यू हैदराबाद रहीं थीं.बाबू  जी अजय व् मुझे लेकर भुआ के घर सप्रू मार्ग रुके थे.लौटते में लाखेश भाई साः.ने बाबू  जी से वे पुरानी चप्पलें ले लीं थीं.ट्रेन में रात किसी ने बाबू  जी के नए जूते भी चुरा लिए तो बरेली कैंट से गोला बाज़ार तक बाबू  जी को बिना जूता,चप्पल पहने ही आना पड़ा .

पास के गाँव चन्हेटी में साप्ताहिक पैंठ लगती थी जिसमे दोनों भाई बाबू  जी के साथ सब्जी लेने जाते थे.एक बार जब बाबू जी दरियाबाद से होकर लौटे थे तो दोनों भाई सुबह छै बजे चन्हेटी हाल्ट पर उन्हें लेने भी गए थे.जिस दिन हमारे स्कूल का वार्षिकोत्सव था हम लोगों को ट्रेन से मथुरा जाना था.
बउआ की इच्छा बाँके बिहारी मंदिर वृन्दावन जाने की थी और उन्होंने अपने मिले-मिलाए रु.बाबूजी को टिकट वास्ते दिए थे.३-४ दिन वृन्दावन और मथुरा रह कर मंदिर घूम कर जब लौट कर कैंट स्टेशन से घर आरहे थे;रिक्शा पर ही बाबूजी के किसी साथी ने सूचना दी कि उनका तबादला सिलीगुड़ी हो गया है.१९६२ में चीनी आक्रमण के दौरान सिलीगुड़ी नॉन फैमिली स्टेशन था अतः हम लोगों को शाहजहांपुर में नानाजी के घर रहना पड़ा.एक ही क्लास को दो शहरों में पढना पड़ा.डेढ़ वर्ष में ही बरेली छूट गया था.

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