Friday 23 September 2022

बेरोजगारी के आज के दौर में ------ विजय राजबली माथुर

 बेरोजगारी के आज के दौर में 47 वर्ष पूर्व आज ही के दिन अर्थात 22 सितंबर 1975 को लगभग 90 दिन  की बेरोजगारी के बाद रोजगार की पुनर्प्राप्ति की घटना स्मृति पटल पर घूम गई।

25 जून 1975 को इमरजेंसी घोषित हुई थी और उसी की आड़ लेकर 29 जून को सारू स्मेल्टिंग,मेरठ से मेरी सेवाएं समाप्त कर दी गई थीं और भी बहुतेरे लोगों के साथ ही।लिहाजा माता पिता के पास आगरा आ गया था और नौकरी की तलाश में जुट गया था।

निर्माणाधीन आईटीसी मोघुल ओबेरॉय में डाक से अर्जी भेज दी थी।

16 सितंबर को 18 तारीख को लिखित परीक्षा देने का काल लेटर डाक से प्राप्त हुआ , 20 सितंबर को साक्षात्कार हुआ और ज्वाइन करने को कहा गया।मैंने सोमवार 22 सितंबर 1975 को ज्वाइन कर लिया।

लिखित परीक्षा में 20 उम्मीदवार थे जिनमें से 4 को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया था एक मैं,दूसरे विनोद श्रीवास्तव,तीसरे सुदीप्तो मित्र,चौथे एक सक्सेना साहब थे।पोस्ट दो ही थीं।

मैंने 22 सितंबर को जबकि सुदीप्तो मित्र ने 01 अक्तूबर को ज्वाइन कर लिया था। सक्सेना साहब फिर नहीं मिले जबकि विनोद श्रीवास्तव थोड़े थोड़े अंतराल पर हम से मिलते और उनको भी एडजस्ट करवाने को कहते रहे।

चूंकि मित्र साहब स्टोर में थे और मैं अकाउंट्स में लिहाजा दोनों से ठेकेदार ,सप्लायर्स का संपर्क था।मित्र ज्यादा बोलने और मजाक पसंद थे और मैं चुपचाप गंभीरता से काम करने वाला।अतः मैन कांट्रेक्टर  जी एस लूथरा साहब के बेटे जगमोहन लूथरा साहब ने मुझ से अपने जैसा काम करने वाला एक लड़का रेफर करने को कहा मैंने विनोद श्रीवास्तव को बुलवा कर उनसे भेंट करवा दी।उन्होंने उनको तत्काल ज्वाइन करवा दिया।

इमरजेंसी में 29 जून से 21 सितंबर तक की बेरोजगारी में सिर के बाल तक झड़ गए थे ऐसा होता है बेरोजगारी का आघात इसलिए मैंने विनोद श्रीवास्तव को नियुक्त करवा कर उनका भी आघात कम करवा दिया।अब तो आफिशियली वह दिन में कई कई बार मुलाकात करते थे।राजनीतिक चर्चा भी हो जाती थी मैं इंदिरा गांधी का विरोध करता था वह तब कांग्रेस का समर्थन करते थे।

लूथरा साहब के एक विश्वस्त सुपरवाइजर थे अमर सिंह राठौर जो बीएसएफ के रिटायर्ड सब इंस्पेक्टर थे उनको ज्योतिष की गहन जानकारी थी विनोद की उनसे खूब पटती थिएं तब मैं ज्योतिष  विरोधी था विनोद ने उनसे मेरा हाथ देख कर बताने को कहा मैं हाथ दिखाने को अनिच्छुक था।विनोद जबरदस्ती लगभग खींचते हुए ही उनके पास ले गए थे।उनसे बोले इनको नहीं उनको अर्थात विनोद को बताएं कि इनका क्या भविष्य है

अमर सिंह ने  विनोद को मेरे बारे में जो बताया उसकी मैने उपेक्षा  कर दी जिस पर अमर सिंह का कहना था आज यह मेरी खिल्ली उड़ा रहे हैं एक दिन यही हमारी तरह सबको उनके भविष्य के प्रति आगाह करते हुए तुमको मिलेंगे।

अमर सिंह के अनुसार 26 वर्ष की उम्र में मेरा अपना मकान होना था तब उम्र 23 वर्ष और वेतन रु 275 मासिक था अतः मुझे उपहास करना ही था कि कैसे संभव होगा?उनका कहना कैसे होगा वह नहीं जानते लेकिन ऐसा ही होगा और यह भी कि 42 वर्ष की उम्र में वास्तविक रूप से अपना होगा जबकि उसमे रहोगे 26 की उम्र से ही।

एक और सहकर्मी ने 1977  में हाउसिंग बोर्ड के कुछ मकान बुकिंग होने की सूचना दी उन्होंने खुद और एक नेवी के रिटायर्ड साहब ने भी फार्म भरा था उनके पास पैसे थे जबकि मेरे और उन  सहकर्मी के पास आभाव था।

लेकिन सारू स्मेल्टिंग,मेरठ में मेरे डिपोजिट के 3000रु थे जिनको वे रिलीज नहीं कर रहे थे उनको लीगल नोटिस दिया तो फटाफट भेज दिए। उन रुपयों का डीडी 27 मार्च 1977 को जब मोरार जी देसाई पी एम की शपथ ग्रहण कर रहे थे सेंट्रल बैंक,आगरा कैंट से बनवा रहा था।

03 अप्रैल 1978 को लखनऊ से जारी एलाटमेंट लेटर मिला और 10 अप्रैल 1978 को रु 290 की पहली किश्त जमा कर दी तब तक वेतन बढ़ कर रु 500 मासिक हो चुका था।तब उम्र 26 वर्ष ही थी अक्टूबर तक  कमला नगर ,आगरा में हायर परचेज के अपने मकान में आ भी गए थे तब तक लूथरा साहब ने दिल्ली में अमर सिंह को अमर ज्योतिष कार्यालय  अपने कार्यालय के साथ खुलवा दिया था।वहां पत्र भेज कर अमर सिंह जी को साभार सूचना दी जिस पर वह बेहद खुश भी हुए और आगरा आकर हमसे होटल मुगल में मिले भी।15 वर्ष की किश्त जमा होने पर भी रिश्वतखोर अडंगा लगा रहे थे ,में cpi आगरा का जिला कोषाध्यक्ष था गवर्नर मोती लाल बोरा को पत्र भेजा उनके हस्तक्षेप से रजिस्ट्री हुई तब उम्र 42 वर्ष ही हो गई थी।

विनोद श्रीवास्तव को हमने होटल मुगल में ही जाब  दिला दिया और लूथरा साहब से रिलीव करवा दिया।बाद में विनोद केनरा बैंक में तथा सुदीप्तो मित्र बैंक आफ बड़ौदा में चले गए।

अमर सिंह जी ने 1975 में कुल 13 वर्ष की ही नौकरी बताई थी और बाद में दिमाग से खाने की बात कही थी। उस वक्त हास्यास्पद लगा था।जनवरी 1985 में होटल मुगल से सेवाएं समाप्त हो गईं इस प्रकार 1972 से 1985 तक 13 वर्ष की ही नौकरी करने की बात भी सही  ही रही।

हालांकि 1985 से 2000 तक 15 वर्ष हींग की मंडी आगरा के जूता बाजार में विभिन्न दुकानों में ट्यूशन बेसिस पर अकाउंट्स जाब किया लेकिन अन रिकार्ड  सर्विस थी दिमाग का ही काम था।

2000 में बाबू जी साहब अर्थात श्वसुर साहबया स्व बिलासपती सहाय ) के परामर्श पर ज्योतिष का कार्य अपना लिया और उनकी ही पुत्री के नाम पर सरला बाग,आगरा में पूनम ज्योतिष कार्यालय भी खोला था।

चंद्र मोहन शेरी,राकेश त्विकले,विराज माथुर और उनके मौसेरे भाई मनोज माथुर आदि ने मुझसे परामर्श भी लिया और हवन भी करवाया।अन्य बिरादरी के लोगों में ब्राह्मण प्रोफेसर,अधिकारी भी शामिल रहे।डाक्टर अजीत माथुर उनकी माता जी,बहन और बहनोई भी मुझसे परामर्श लेने वालों में रहे हैं।

अब लखनऊ में सक्रिय नहीं हूं केवल परिचितों और रिश्तेदारों को परामर्श दे रहा हूं।

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