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Saturday 29 August 2015

लखनऊ तब और अब --- विजय राजबली माथुर




मंगलवार, 3 अगस्त 2010

लखनऊ तब और अब :

जन्म से १९६१ तक लखनऊ में रहने के बाद गत वर्ष अक्टूबर में पुनः लखनऊ वापसी हुई.तब से अब तक के लखनऊ में न केवल क्षेत्रफल की  दृष्टि से बल्कि लोगों के तौर तरीकों और आपसी व्यवहार  में भी बेहद तब्दीली हो चुकी है.१९८१ में जब कारगिल में नौकरी के सिलसिले में था तो टी बी अस्पताल के सी ऍम ओ साहब  ने बोली के आधार पर कहा था कि क्या आप लखनऊ के हैं?९ वर्ष कि उम्र में शहर छोड़ेने के बीस सालों बाद भी बोली के आधार पर मुझे लखनऊ से जोड़ा गया था.लेकिन ४९ साल बाद वापिस लखनऊ लौटने पर यहाँ के लोगों ने मुझे बाहरी माना है.तब हुसैन गंज में रहता था,मुरली नगर के डी पी निगम गर्ल्स जू.हाई स्कूल  में पढता था और अब कचहरी से लगभग १० कि मी दूर नई कालोनी में रहता हूँ.लखनऊ की नई कालोनियों में लगभग ८०% लोग बाहर  से आकर बसे हैं और लखनवी तहजीब से कोसों दूर हैं वे ही मुझे बाहरी मानते हैं.

जो ज्योतिषी बेईमानी,ढोंग और पाखण्ड पर चलते हैं उन्हें भी मेरा ईमानदारी और वैज्ञानिक आधार पर  चलना नहीं सुहाता है.यह सब लखनवी कल्चर के खिलाफ है लेकिन लखनऊ उन्हीं का है.

लखनऊ से बरेली वहां से शाहजहाँ पुर जहाँ से सिलिगुड़ी फिर शाहजहाँ पुर और मेरठ रहकर आगरा पहुंचे और अपना मकान बना कर बस गए.मेरठ कॉलेज में पढाई के दौरान छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष से फ़िराक गोरखपुरी  साहब का यह कथन सुनकर आगरा बसने का फैसला किया था कि,यू.पी.में जितने आन्दोलन मेरठ -कानपुर डायगनल  से शुरू हुए विफल रहे जबकि बलिया-आगरा डायगनल  से शुरू आन्दोलन पूरे यू.पी. में छा कर देश में भी सफल रहे.आगरा के अब के लोगों में वह राजनीतिक  समझ नहीं देखी  उनकी बेरुखी और पुत्र के आग्रह के कारण पुनः लखनऊ आने का फैसला किया ,अभी तो पूरी तरह सेटल भी नहीं हो सके हैं –देखते हैं की क्या यहाँ रह कर देश के लिए कोई राजनीतिक योग दान दे सकता हूँ या नहीं.”जननी जन्मभूमिश  च स्वर्गादपि गरीयसी” कहा तो जाता है लेकिन मेरी जन्म  भूमि लखनऊ और यहाँ के लोग मुझे देश-समाज के हित में कुछ करने देने में कितना सहयोग करते हैं ? यही देखना –समझना बाकी है.उम्मीद छोड़ी नहीं है.

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(ये विवरण पहले एक अन्य ब्लाग में प्रकाशित हैं परंतु वहाँ और भी निजी बातों का साथ-साथ संकलन था इसलिए सार्वजनिक महत्व के विषयों को छांट-छांट कर अलग इस ब्लाग में देने का निर्णय लिया है। इस कड़ी में आज रक्षाबंधन पर्व के अवसर पर यह प्रथम विवरण प्रकाशित कर रहे हैं । --- (विजय राज बली माथुर )