Showing posts with label विश्वनाथ दास. Show all posts
Showing posts with label विश्वनाथ दास. Show all posts

Wednesday 2 September 2015

लखनऊ की कुछ और झीनी यादें --- विजय राजबली माथुर

गुरुवार, 9 सितंबर 2010


लखनऊ की कुछ और झीनी यादें ---


(यों तो १९७३ में मेरठ से ही मैं साप्ताहिक अख़बारों में लिख रहा था,लखनऊ आकर ब्लॉग के माध्यम से लखनऊ से सम्बंधित  कुछ और लोगों से संपर्क हुआ तो लखनऊ में बचपन की कुछ और यादों को लिखने का पक्का विचार बना अन्यथा बरेली के सम्बन्ध में अधूरे लेखन को पूरा करना था.मेरी पत्नी पूनम कई दिनों से इसे आगे बढाने को कह रहीं थीं,लेखन में उनका पूरा सहयोग और प्रेरणा रहती है.उनके पिता जी पटना के श्रीवास्तव परिवार के स्व.विलास पति सहाय साः की सलाह पर मैंने ज्योतिष को प्रोफेशन बनाया था ,चूंकि वह गणित के माहिर थे अतः उन्होंने ज्योतिष के महत्त्व को ठीक से समझ लिया था.)
बात शायद ५९ या ६० की रही होगी;अजय और मैं बाबू  जी के साथ  साईकिल से ६-सप्रू मार्ग भुआ के घर से लौट रहे थे.बर्लिंगटन होटल के पास पहुंचे ही थे की पता चला नेहरु जी आ रहे हैं.बाबू जी ने प्रधान मंत्री को दिखाने के विचार से रुकने का निर्णय लिया जबकि घर के पास पहुच चुके थे.नेहरु जी खुली जीप में खड़े होकर जनता का अभिवादन करते और स्वीकार करते हुए ख़ुशी ख़ुशी अमौसी एअरपोर्ट से आ रहे थे.आज जब विधायकों,सांसदों तो क्या पार्षदों को भी शैडो के साए में चलते देखता हूँ तो लगता है कि नेहरु जी निडर हो कर जनता के बीच कैसे चलते थे? जनता उन्हें क्यों चाहती थी? हुसैनगंज चौराहे पर मेवा का स्वागत फाटक बनवाने वाले चौरसिया जी का भतीजा मेरे क्लास में पढता था.नेहरु जी की सवारी जा चुकी थी और जनता आराम से मेवा तोड़ कर ले जा रही थी कहीं कोई पुलिस का सिपाही नहीं था और फ़ोर्स भी तुरंत हट चुका था.यह था उस समय के शासक और जनता का रिश्ता.आज क्या वैसा संभव है?हुसैनगंज चौराहे पर ही मुहर्रम का जुलूस या गुड़ियों का मेला दिखाने भी बाबु जी ले जाते थे.इक्का-दुक्का सिपाही ही होते होंगे आज सा भारी पुलिस फ़ोर्स तब नज़र नहीं आता था.
विधान सभा पर २६ जनवरी को गवर्नर विश्वनाथ दास द्वारा ध्वजारोहण भी बाबु जी ने साईकिल के कैरियर और गद्दी पर दोनों भाइयों को खड़ा करके आसानी से दिखा दिया था क्या आज वैसा संभव है? आज तो साईकिल देखते ही पुलिस टूट पड़ेगी.उस समय तो एक निजी विवाह समारोह में भी विधान सभा के लॉन में एक चाय पार्टी में बाबा जी के साथ शामिल होने का मौका मिला था.वह समारोह संभवतः राय उमानाथ बली के घर का था.आज तो उस क्षेत्र में दो लोग दो पल ठहर भी जाएँ तो तहलका मच जायेगा. यह है हमारे लोकतंत्र की मजबूती !
न्यू हैदराबाद से  पहले तो मामा जी खन्ना विला में रहते थे जिसे स्व.वीरेन्द्र वर्मा ने किराए पर ले रखा था और मामा जी वर्मा जी के किरायेदार थे.वर्मा जी तब संसदीय सचिव थे और उनके पास रिक्शा में बैठ कर दो मंत्री चौ.चरण सिंह और चन्द्र भानु गुप्ता अक्सर आते रहते थे.तब यह सादगी थी और आज के मंत्री.......? बाद में मामा जी वहां से शिफ्ट हो गए जिसमे पहले सेन्ट्रल एकसाइज़ इंस्पेक्टर उनके साले श्री वेद प्रकाश माथुर रहते थे. घर के पीछे इसी पार्क के सामने मुझे लिए उनका (मामा जी का) फोटो :


वेद मामाजी की मोटर साईकिल पर मुझे बैठाये सरोज मौसी (माईंजी की बहन व डॉ राजेन्द्र बहादुर श्रीवास्तव साहब की पत्नि ) उनके घर के आगे पुलिस लाईन की तरफ वाली सड़क पर। 
इसी पार्क में बचपन में खेलने का अवसर मिला है.१९६० की बाढ़ में मामा जी का घर तीन तरफ से पानी से घिर गया था.कई दिन वे लोग वहीँ घिरे रहे और पानी उतरने पर ही निकल सके वहां नाव तक चली थी.हमारा घर हुसैनगंज में नाले से सटा था लेकिन हमलोग बाढ़ से बचे हुए थे बल्कि भुआ का पूरा परिवार हमारे ही घर में आकर रहा था.बाढ़ उतरने के बाद ही नाना जी ने आकर कुशलता की सूचना दी थी बल्कि जिस दिन बाढ़ आने वाली थी वह आकर बउआ को बता गए थे की बाढ़ आ रही है कई दिन बाद मिल पाएंगे.तब उनके सामने वाले पार्क में वोट भी पड़ते थे.क्या आज खुले में मतदान स्थल बन सकता है? बातें तो बहुत सी धुंधली यादों में हैं.लखनऊ वापिस आने पर लखनऊ से सम्बंधित पुराने लोगों से ये ब्लॉग परिचित कराता जा रहा है यही बहुत है.
Typist -यशवंत (जो मेरा मन कहे......)